दशहरा क्यों मनाते है? जानिए 2024 मे इस महत्वपुर्ण दिन की तिथि और समय

दशहरा, (dassahra)जिसे विजयादशमी के नाम से भी जाना जाता है, भारत के सबसे प्रमुख और महत्वपूर्ण हिंदू त्योहारों में से एक है। यह त्योहार बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक है। अश्विन माह (सितंबर-अक्टूबर) के दसवें दिन मनाया जाने वाला यह पर्व नवरात्रि के नौ दिनों की आराधना और उत्सव के पश्चात आता है, जो इसे और भी विशेष बना देता है।

क्यों मनाते है दशहरा(dassahra)

दशहरा (dassahra)को बुराई पर अच्छाई की विजय के प्रतीक के रूप में बड़े उत्साह और श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। यह पर्व भगवान राम द्वारा राक्षसराज रावण के संहार और देवी दुर्गा द्वारा महिषासुर नामक भैंस राक्षस पर विजय की स्मृति को ताजा करता है। यह धार्मिकता, न्याय, और हमारी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत के उत्सव का प्रतीक है, जो समाज में सद्गुणों और नैतिकता की जीत को उजागर करता है।

दशहरा (dassahra)हिंदू धर्म में एक अत्यंत महत्वपूर्ण पर्व है, जो हमें यह अमूल्य सीख देता है कि अच्छाई हमेशा बुराई पर विजय प्राप्त करती है। यह त्यौहार दो महान पौराणिक कथाओं की स्मृति में मनाया जाता है, जो सदैव नैतिकता, साहस और सत्य की महत्ता को उजागर करती हैं।

भगवान राम की विजय: रामायण की पौराणिक कथा में, भगवान राम ने उस दुष्ट राजा रावण के खिलाफ युद्ध छेड़ा था, जिसने छल से उनकी पत्नी सीता का अपहरण किया था। लंबे संघर्ष और कई चुनौतियों के बाद, दशहरे के दिन राम ने रावण का वध कर धर्म और न्याय की स्थापना की। यह कथा इस बात का प्रतीक है कि सत्य, अच्छाई और धर्म के मार्ग पर चलने वाले हमेशा अंततः विजय प्राप्त करते हैं।

दशहरा (dassahra) के दिन रावण का पुतला क्यों जलाते है?

हिंदू धर्म में हर साल अश्विन माह के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को दशहरे का पर्व धूमधाम से मनाया जाता है। इस दिन पूरे देश में रावण के पुतले का दहन किया जाता है, जिसे बुराई पर अच्छाई और अंधकार पर प्रकाश की विजय का प्रतीक माना जाता है। हिंदू मान्यताओं के अनुसार, इसी दिन भगवान श्री राम ने लंकापति रावण का वध किया था।

लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि केवल रावण के पुतले का ही दहन क्यों किया जाता है? कंस और महिषासुर जैसे अन्य राक्षसों के पुतले क्यों नहीं जलाए जाते? इसका कारण यह है कि रावण न केवल एक महान विद्वान और शक्तिशाली राजा था, बल्कि उसकी हार को उसके अहंकार और अधर्म पर धर्म की जीत के रूप में देखा जाता है। यही कारण है कि रावण के पुतले का दहन दशहरे पर बुराई के विनाश और अच्छाई की विजय का सबसे बड़ा प्रतीक बन गया है।

रावण को अपनी अपार शक्ति पर अत्यधिक अहंकार था। वह विश्व विजेता बनने की चाह रखता था, और इसी उद्देश्य से उसने भगवान ब्रह्मा की कठोर तपस्या की और अमर होने का वरदान मांगा। लेकिन भगवान ब्रह्मा ने उसे समझाते हुए कहा कि मृत्यु तो संसार का अटल सत्य है, जिसे कोई टाल नहीं सकता। इस पर रावण ने एक और चालाकी दिखाई और वरदान मांगा कि उसकी मृत्यु मनुष्य और वानर के सिवाय किसी के हाथों न हो।

रावण को विश्वास था कि उसकी शक्ति से देवता भी भयभीत हैं, तो साधारण मनुष्य और वानर उसका क्या बिगाड़ सकेंगे। यही रावण का घमंड उसकी सबसे बड़ी भूल साबित हुई। भगवान विष्णु ने उसे पराजित करने के लिए एक सामान्य मनुष्य के रूप में श्री राम का अवतार लिया। जब भगवान राम ने एक साधारण मानव रूप में रावण का वध किया, तो इससे यह संदेश गया कि चाहे बुराई कितनी भी शक्तिशाली क्यों न हो, अंततः विजय हमेशा अच्छाई की ही होती है। यही कारण है कि हर साल दशहरे पर रावण के पुतले का दहन किया जाता है, जो बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है।

एक अन्य महत्वपूर्ण कथा के अनुसार, देवी दुर्गा ने महिषासुर नामक शक्तिशाली राक्षस के खिलाफ घोर संग्राम किया और उसे पराजित कर, बुराई का अंत किया। यह विजय भी दशहरे के दिन ही हुई थी, इसलिए यह पर्व अच्छाई की अदम्य शक्ति, साहस, और बुराई से लड़ने के संकल्प का प्रतीक है। इस दिन को देवी दुर्गा की अजेय शक्ति और उनके संघर्ष की सफलता का उत्सव मनाने के रूप में भी मनाया जाता है।

इस पर्व के दौरान सामुदायिक आयोजन, विशेष भोजन और सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन भी प्रमुख रूप से किया जाता है। यह समय होता है जब लोग एकजुट होकर उत्सव मनाते हैं, और बहादुरी, वफादारी तथा सत्य के मूल्यों पर चिंतन करते हैं। दशहरा (dassahra) हमें यह महत्वपूर्ण संदेश देता है कि जीवन में चाहे कितनी भी कठिनाइयाँ और चुनौतियाँ क्यों न आएं, अंततः अच्छाई की जीत अवश्य होती है। यह पर्व जीवन में सकारात्मकता, साहस और नैतिकता के महत्व को उजागर करता है।

दशहरा(dassahra) का आध्यात्मिक महत्व अत्यंत गहरा है। यह आत्म-चिंतन और नवीकरण का एक महत्वपूर्ण अवसर है। भगवान राम की विजय की कथा एक सशक्त अनुस्मारक के रूप में कार्य करती है, यह दर्शाते हुए कि अंततः धर्म और सत्य हमेशा छल और अधर्म पर विजय प्राप्त करते हैं। भक्त इस अवसर का उपयोग ईश्वर से आशीर्वाद प्राप्त करने, सद्गुणी जीवन जीने के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को पुनः पुष्ट करने, और व्यक्तिगत चुनौतियों को पार करने के लिए करते हैं। यह पर्व हमें प्रेरित करता है कि हम अपने जीवन में अच्छाई, नैतिकता और सदाचार को महत्व दें।

कुल मिलाकर, दशहरा (dassahra) केवल एक त्यौहार नहीं है; यह साहस, सम्मान और न्याय के स्थायी मूल्यों का उत्सव है। जब लोग इस उत्सव में भाग लेते हैं, तो उन्हें रामायण के शाश्वत शिक्षाओं और सत्य के लिए खड़े होने के महत्व की याद आती है। दशहरा (dassahra) के आयोजन का आनंद और उत्साह बुराई पर अच्छाई की विजय में गहरी आस्था को दर्शाता है, जो लोगों को ईमानदारी और धार्मिकता के साथ जीवन व्यतीत करने के लिए प्रेरित करता है। यह पर्व हमें याद दिलाता है कि नैतिकता और धर्म के मार्ग पर चलना ही सच्ची जीत है।

दशहरा डेट और टाइम

हिंदू धर्म में हर साल 9 दिनों तक शारदीय नवरात्रि का पर्व बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। मान्यता है कि मां दुर्गा ने 9 दिनों तक चले युद्ध के बाद विजयादशमी के दिन महिषासुर का वध किया था। इस उल्लास के मौके पर हर वर्ष अधर्म पर धर्म की विजय का पर्व मनाया जाता है। इसी दिन भगवान श्रीराम ने रावण का भी संहार किया था, जिससे यह त्योहार और भी महत्वपूर्ण हो जाता है। इन पौराणिक मान्यताओं के आधार पर दशहरा(dassahra) मनाया जाता है। इस दिन कई लोग अपने घरों में पूजा-अर्चना भी करते हैं, ताकि वे देवी-देवताओं का आशीर्वाद प्राप्त कर सकें।

इस वर्ष 2024 में आश्विन माह की शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि 12 अक्टूबर की सुबह 10:58 मिनट से प्रारंभ होगी और यह 13 अक्टूबर की सुबह 09:08 मिनट तक रहेगी। उदयातिथि के अनुसार, 12 अक्टूबर को दशहरा का त्योहार धूमधाम से मनाया जाएगा। यह दिन बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक है और श्रद्धालु इस अवसर पर देवी-देवताओं की आराधना करेंगे।

दशहरा
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