नवरात्रि का 5 वा दिन : जानिए मां स्कंदमाता की पूजा विधी, success और Blessing प्राप्ति के उपाय और शुभ मुहूर्त

देवी की आराधना का प्रतीक यह जीवंत नौ दिवसीय उत्सव 3 अक्टूबर से शुरू होकर शनिवार, 12 अक्टूबर तक हर्षोल्लास के साथ मनाया जाएगा। इस दौरान उपवास, रात भर के सांस्कृतिक समारोह, और गरबा जैसे रंगारंग कार्यक्रमों की धूम रहती है। हर दिन देवी दुर्गा के एक अलग रूप को समर्पित होता है, जिन्हें “आदिशक्ति” के रूप में पूजित किया जाता है। नवरात्रि का 5 वा दिन मां स्कंदमाता को समर्पित है

यह पर्व न केवल समर्पण और भक्ति का प्रतीक है, बल्कि सामुदायिक एकता और सौहार्द की भावना को भी प्रकट करता है, जहां भक्तगण देवी के विभिन्न रूपों की पूजा-अर्चना करते हुए अनेक अनुष्ठानों और परंपराओं का पालन करते हैं। उत्सव का समापन दसवें दिन दशहरा (विजयादशमी) के साथ होता है, जो बुराई पर अच्छाई की जीत का महत्त्वपूर्ण प्रतीक है।

5 वे दिन का कलर

स्कंदमाता, देवी दुर्गा का पांचवां रूप, “स्कंद” (युद्ध के देवता) और “माता” (मुरुगन की मां) से मिलकर बना है। इस दिन का प्रमुख रंग सफेद है, जो पवित्रता और मासूमियत का प्रतीक है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन सफेद वस्त्र धारण करने से भक्त देवी स्कंदमाता के विशेष आशीर्वाद के पात्र बनते हैं, और उनके जीवन में शांति और समृद्धि का संचार होता है।

मां स्कंदमाता

मां स्कंदमाता देवी दुर्गा का पांचवां स्वरूप हैं, जिनकी पूजा चैत्र नवरात्रि के पांचवें दिन की जाती है। “स्कंद” का अर्थ भगवान कार्तिकेय से है, जो भगवान शिव और मां पार्वती के पुत्र और भगवान गणेश के भाई हैं। “माता” का अर्थ मां है, इसलिए स्कंदमाता को भगवान कार्तिकेय की माता के रूप में जाना जाता है। भगवान कार्तिकेय को भारत के विभिन्न हिस्सों में मुरुगन या सुब्रमण्यम के नाम से भी पूजा जाता है, और मां स्कंदमाता की उपासना शक्ति, समर्पण और मातृत्व के प्रतीक रूप में की जाती है।

मां स्कंदमाता को चार भुजाओं वाली देवी के रूप में चित्रित किया जाता है, जो अपने पुत्र भगवान स्कंद (कार्तिकेय) को गोद में लेकर शेर पर सवार होती हैं। उनके दोनों ऊपरी हाथों में कमल के फूल होते हैं, जबकि निचला दाहिना हाथ अभय मुद्रा में रहता है और बाएं हाथ में बालक मुरुगन होते हैं। मां स्कंदमाता कमल के फूल पर विराजमान रहती हैं, जिससे उन्हें देवी पद्मासना भी कहा जाता है। यह रूप शक्ति, मातृत्व और करुणा का प्रतीक है।

मां स्कंदमाता हृदय चक्र से जुड़ी हुई हैं, जो प्रेम, करुणा और समझ का प्रतीक है। वह मातृ प्रेम और निडरता का भी प्रतिनिधित्व करती हैं, अपने भक्तों को सुरक्षा और समृद्धि का आशीर्वाद देती हैं। माना जाता है कि स्कंदमाता का बुद्ध ग्रह पर शासन है, और उनकी पूजा से भक्त सुरक्षा, समृद्धि और जीवन में सफलता की कामना करते हैं। इसके साथ ही, यह भी माना जाता है कि देवी अपने भक्तों को ज्ञान, बुद्धि और आत्मज्ञान प्रदान करती हैं, जिससे उनके प्रयास सफल होते हैं।

पूजा की विधी

नवरात्रि के पांचवें दिन स्कंदमाता की पूजा करते समय, सबसे पहले स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें। पूजा स्थल पर देवी की प्रतिमा या तस्वीर स्थापित करें और गंगाजल से शुद्धिकरण करें। कलश में पानी और सिक्के डालकर चौकी पर रखें। पूजा का संकल्प लें, फिर देवी को रोली-कुमकुम और नैवेद्य अर्पित करें। धूप-दीपक से आरती करें। सफेद वस्त्र पहनें और देवी को केले का भोग लगाएं, जो उनके प्रिय माने जाते हैं। मान्यता है कि ऐसा करने से मां निरोगी रहने का आशीर्वाद देती हैं

शुभ मुहूर्त

नवरात्रि के दौरान, भक्त मां दुर्गा की आराधना में लीन रहते हैं, और प्रत्येक दिन देवी के विभिन्न स्वरूपों की पूजा की जाती है। नवरात्रि का पांचवां दिन मां स्कंदमाता को समर्पित है। स्कंदमाता की चार भुजाएं होती हैं, जिनमें से दो हाथों में वह कमल का फूल धारण करती हैं, जबकि एक हाथ में स्कंदजी बालरूप में हैं और दूसरे हाथ में तीर को संभाले हुए हैं। मां कमल के आसन पर विराजमान होती हैं, इसीलिए उन्हें पद्मासना देवी भी कहा जाता है। उनका वाहन सिंह है, जो उनके कल्याणकारी स्वरूप को दर्शाता है।

वैदिक पंचांग के अनुसार, मां स्कंदमाता की पूजा करने के लिए शुभ मुहूर्त सुबह 11 बजकर 40 मिनट से लेकर 12 बजकर 30 मिनट तक रहेगा

स्कंदमाता का भोग

स्कंदमाता को केले और उनसे बनी चीजों का भोग चढ़ाया जाता है। आप केले का हलवा बनाकर देवी को अर्पित कर सकते हैं। हलवा बनाने के लिए सबसे पहले केले छीलकर छोटे टुकड़ों में काट लें। एक कड़ाही में घी गर्म करें और उसमें कटे हुए केले डालकर हल्का भून लें। फिर एक कप चीनी डालें और मिश्रण को गाढ़ा होने तक पकाएं। पकने के बाद इलायची पाउडर डालें। इससे स्वादिष्ट और भोग के लिए उपयुक्त हलवा तैयार हो जाएगा, जिसे देवी को अर्पित किया जा सकता है।

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